देश के प्राचीन इतिहास और इमारतों की बात करें तो आज भी बहुत सी इमारतें ऐसी है जो अपनी खासियत के लिए दुनियाभर में काफी मशहूत है। ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोवर है रानी की वाव , जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे है।

‘रानी की वाव’
११ वी सदी में इस वाव का निर्माण मुलाराजा के बेटे भीमदेव प्रथम की याद में उनकी विधवा पत्नी उदयमती ने करवाया था। जिसे बाद में करणदेव प्रथम ने पूरा किया।

इस बावड़ी को बनाने का मूल मकसद दरअसल जल संरक्षण था। पाटन जिले में चूंकि बारिश कम होती है, इसीलिए सरस्वती नदी के किनारे रानी उदयमती ने इस वाव के निर्माण की योजना बनाई ताकि बरसात के समय इस वाव में जमा पानी बाद में लोगों के काम आये।

रानी की वाव तकरीबन ६४ मीटर लम्बी, २७ मीटर गहरी और २० मीटर चौड़ी है। यह बावड़ी अपने समय की सबसे प्राचीन और सबसे अद्भुत निर्मितियों और कलाकृतियों का बेहद सुन्दर उदहारण दर्शाती है।
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रानी की वाव में आज भी ऐसे कई आयुर्वेदिक पौधे देखें जा सकते है जिनका इस्तेमाल प्राचीन समय में बहुत गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता था। बावड़ी के नीचे एक छोटा द्वार भी है जिसके भीतर ३० किलोमीटर की एक सुरंग भी है, मगर फिलहाल इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरों से ढक दिया गया है। पहले यह सुरंग बावड़ी से निकलकर सीधी सिधपूर गांव को जाकर मिलती थी, जिसे बताया जाता है कि इसका उपयोग गुप्त निकास द्वार के रूप में उस समय राजा किया करते थे।

सात मंजिला इस वाव की दीवारों और स्तंभों पर सैकड़ों नक्काशियां की गयी है। सात तलों में विभाजित इस सीढ़ीदार कुएं में नक्काशी की गयी ५०० से भी अधिक बड़ी मूर्तियां और हजारों की संख्या में छोटी मूर्तिया है। साल २०१४ में रानी की वाव को यूनेस्को ने विश्व विरासत में शामिल किया है और भारत सरकार ने रानी की वाव को साल २०१८ में हलके बैगनी रंग की १०० रूपये की नोट पर इस विश्व धरोहर की तस्वीर को सम्मान दिया है।
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