फिल्म ‘शोले’ आज भी सदाबहार फिल्मों की सूची में टॉप पर है। फिल्म में जय – वीरू की जोड़ी, बसंती की बड़बड़, गब्बर की हंसी और फिल्म के डायलॉग को कोई भूल ही नहीं सकता। फिल्म के बारे में वैसे तो कई बातें लोगों को मालूम है मगर ये शायद ही लोगों को पता है कि फिल्म के अंत यानी क्लाइमेक्स के साथ छेड़छाड़ हुई थी। फिल्म में जहाँ गब्बर को अंत में पुलिस पकड़ कर ले जाती है, असल में गब्बर को ठाकुर के जरिये मौत के घात उतारा जाता है। जी हाँ, यही फिल्म का पहले क्लाइमेक्स था।
साल १९७२ में रिलीज़ हुई फिल्म सीता और गीता बेहद सफल हुई थी। फिल्म के हिट होने का जश्न मनाया जा रहा था। फिल्म के लेखक सलीम-जावेद, फिल्म के निर्देशक जीपी सिप्पी अपने बेटे रमेश सिप्पी के साथ इस पार्टी में मौजूद थे। इसी पार्टी में ये तय हुआ कि अब की बार इससे भी चार कदम आगे भारी बजट वाली फिल्म बनायीं जायेगी और यहीं से फिल्म शोले की कहानी का जन्म हुआ। लेखक सलीम-जावेद के साथ मिलकर रमेश सिप्पी घंटो बैठकर शोले फिल्म की कहानी को अंतिम रूप देते रहे। फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार हुई, इसके बाद कलाकारों का चयन किया गया। जिसके पीछे भी अलग कहानी है।

सेंसर बोर्ड ने २० जुलाई १९७५ के दिन क़ानून का हवाला देकर इस सीन को बदलने की सलाह दी थी। इसी वजह से फिल्म के क्लाइमेक्स को दोबारा शूट किया गया, जिसमें २६ दिन लग गये। फेरबदल करते हुए फिल्म के क्लाइमेक्स में गब्बर को मारने से पहले वहां पुलिस आ जाती है और गब्बर को क़ानून के हवाले कर दिया जाता है। इसी फेरबदल के साथ फिल्म को रिलीज़ किया गया।
सदी का महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के लिए साल १९७५ बेहद लकी साबित हुआ था। इसी साल अमिताभ बच्चन की दो फ़िल्में रिलीज़ हुई थी जो उनके करियर की सबसे हिट फ़िल्में थी। साल की शुरुवात में अमिताभ की फिल्म ‘दीवार’ और अगस्त के महीने में फिल्म ‘शोले’ रिलीज़ हुई थी।

इन दोनों फिल्मों में समानता ये थी कि दोनों ही फिल्मों में आखिर में अमिताभ की मौत हो जाती है। फिल्म ‘दीवार’ में निरुपा राय की गोद में अमिताभ के मरने का सीन हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे यादगार सीन्स में से एक है। जब फिल्म ‘शोले’ को ४१ वर्ष पूरे हुए थे तब अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म से जुडी कई यादें मीडिया के सामने शेयर की थी। वैसे तो हम और आप सभी ये जानते है कि जब फिल्म ‘शोले’ रिलीज़ हुई थी तो शुरुवाती हफ्ते में कुछ खास नहीं कर पा रही थी।

पहले ही हफ्ते में फिल्म को देखने के लिए दर्शकों की कमी की वजह से फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी और कहानीकार सलीम-जावेद को बड़ी चिंता होने लगी थी। जिसके बाद एक दिन अमिताभ बच्चन के घर बैठकर काफी विचार-विमर्श किया गया और ये फैसला लिया गया था कि फिल्म ‘शोले’ के आखिर में अमिताभ बच्चन के निधन के सीन को फिर से फिल्माया जाएगा।

इसके पहले रिलीज़ हुई फिल्म ‘दीवार’ में भी अमिताभ को स्क्रीन पर मार दिया था और शायद इसीलिए फिल्म ‘शोले’ में अमिताभ का मरना दर्शकों को रास नहीं आ रहा था। सबकुछ तय होने के बाद शूटिंग के सामान को ‘रामनगर’ पहुंचाने की बुकिंग भी कर दी गयी और ये तय हुआ कि रविवार के दिन इस सीन की रिशूटिंग की जायेगी।

आखिरी समय में निर्देशक रमेश सिप्पी ने सभी से कहा कि सोमवार तक इंतज़ार कर लेते है। अगर फिल्म नहीं चली तो इसके बाद रिशूटिंग तो करनी ही है। इसके बाद सोमवार से दर्शकों की जो प्रतिक्रिया फिल्म ‘शोले’ को मिली वो आज भी एक इतिहास है। जो हम और आप सब जानते ही है।

अगर फिल्म नहीं चली होती तो दर्शकों के सामने इस फिल्म का अंत कुछ और बन कर आता। जिसमें अमिताभ को स्क्रीन पर जिन्दा रखा जाता और फिल्म में एक विधवा का किरदार कर रही जया भादुरी के साथ उनका विवाह कर दिया जाता।

दोस्तों, अगर आपको हमारी यह जानकारी ‘क्यों हुई थी शोले फिल्म के क्लाइमेक्स से छेड़छाड़, रिलीज़ के बाद भी लेना पड़ा था ये फैसला ‘ अच्छी लगी हो तो कृपया इसे लाइक और शेयर जरूर कीजियेगा और कमेंट बॉक्स में ये जरूर बताइयेगा कि अगर फिल्म के क्लाइमेक्स में अमिताभ बच्चन जिन्दा होते तो क्या फिल्म ‘शोले’ इतिहास बना पाती?
दुनिया की कुछ ऐसी अजब गजब रोचक जानकारी जो शायद ही आपको पता होगी | Fact from around the world that you wont believe.
कमल हसन की इस फिल्म की वजह से प्रेमी जोड़ों ने की थी आत्महत्या
जब संजय दत्त को मारने के लिए घूम रहे थे ४ शूटर
अभिनेत्री कुक्कू मोरे – क्योंआखिरी समय में सड़क से बटोरती थी खाना