बॉलीवुड में एक समय में कमाल के ग्रे शेड यानी विलन के किरदार से अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री ललिता पवार को आज भी लोग उनके शानदार अभिनय की वजह से जानते है। मशहूर टीवी सीरियल ‘रामायण’ में मंथरा के किरदार को कौन भूल सकता है भला? नेगेटिव किरदार निभाने वाली ये अभिनेत्री हमेशा से ऐसे किरदार नहीं करती थी, मगर फिल्म सेट पर हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी और उन्हें ऐसे किरदार मिलने लगे थे।

ललिता पवार
१८ अप्रैल १९१८ के दिन नाशिक के येओला में जन्मी ललिता पवार का असली नाम अंबा लक्ष्मण राव सगुन था। अंबा कभी स्कूल नहीं जा पायी, क्योंकि उस समय लड़कियों को स्कूल भेजना ठीक नहीं माना जाता था। ललिता ने फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। ललिता ने पहली बार एक मूक फिल्म में काम किया था और इस फिल्म के लिए उन्हें १८ रुपये मेहनताना के रूप में मिले थे।

ललिता पवार की बायोग्राफी ‘द मिसिंग स्टोरी ऑफ़ ललिता पवार’ के मुताबिक साल १९४२ में फिल्म जंग-ए-आज़ादी की शूटिंग के समय सेट पर एक सीन की शूटिंग चल रही थी। इस सीन में अभिनेता भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था।

एक नए अभिनेता होने की वजह से सीन शुरू होते ही भगवान दादा ने गलती से ललिता को इतनी जोर से थप्पड़ मारा की ललिता पवार गिर पड़ीं और उनके कान से खून निकलने लगा। इसके बाद उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया। जहां डेढ़ महीने तक वो कोमा में रही।

करीब ३ साल तक इलाज कराने के बाद वो ठीक तो हो गयी, मगर उनकी चेहरे पर लकवा मार गया। लकवा भी समय के साथ ठीक हो गया लेकिन उनकी दाहिनी आंख की नस फटने की वजह से वो पूरी तरह से सिकुड़ गयी और हमेशा के लिए उनका चेहरा खराब हो गया।

इस घटना के बाद ललिता को काम मिलना बंद हो गया। अगले कई साल तक अपनी सेहत और हौसले को फिर से हासिल करने की कोशिश में जुटी रही। उनकी इन्हीं कोशिशों की वजह से साल १९४८ में अपनी एक मुंदी आंख के साथ निर्देशक एसएम युसूफ की फिल्म गृहस्थी से एक बार फिर वापसी की। अब ललिता को फिल्मों में जालिम सास के किरदार मिलने लगे थे।

किरदार कैसा भी हो, ललिता ने किसी मौके को नहीं गवाया। जिसके बाद उन्होंने साल १९५९ की फिल्म ‘अनाड़ी’, साल १९६१ में फिल्म ‘मेम दीदी’ और साल १९५५ में फिल्म ‘श्री ४२०’ में काम करके अपनी एक अलग पहचान बना ली।

परदे पर सभी को परेशान करने वाली ललिता की पारिवारिक जिंदगी दुखदायी रही। उनके पहले पति गणपत ने उन्हें धोका दे दिया था। गणपत को ललिता की छोटी बहन से प्यार हो गया था। जिसके बाद में ललिता ने निर्माता राजप्रकाश गुप्ता से शादी कर ली। भगवान दादा को सारी उम्र इस हादसे का अफ़सोस रहा होगा, मगर ललिता ने अपनी कड़ी मेहनत से खूब नाम कमाया। अपने करियर में करीब ७०० फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाने वाली ललिता पवार को साल १९६१ में भारतीय सिनेमा की सबसे पहली महिला के रूप में भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और फिल्मफेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला था।

इस महान अदाकारा २४ फरवरी १९९८ के दिन पुणे के औंध नामक जगह पर अपने छोटे से बंगले आरोही में आखिरी सांसें ली थी। इस महान अदाकारा २४ फरवरी १९९८ के दिन पुणे के औंध नामक जगह पर अपने छोटे से बंगले आरोही में आखिरी सांसें ली थी। उस समय उनके पति राजप्रकाश अस्पताल में भर्ती थे और बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में था। उनकी मौत की खबर तीन दिन बाद मिली जब बेटे ने फोन किया और किसी ने नहीं उठाया। घर का दरवाजा तोड़ने पर पुलिस को ललिता पवार की तीन दिन पुरानी लाश मिली थी।
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