इरफ़ान खान : कभी फिल्म देखने के लिए भी नहीं थे पैसे
आज हम जिस अभिनेता के बारे में आपको बता रहे है उनके पास ना तो कोई फ़िल्मी बैकग्राउंड था और ना फिल्मों में काम करने वाले हीरो जैसी शक्ल। फिर भी ये साल १९८८ से फ़िल्मी दुनिया में काम कर रहे है, लेकिन इन्हें पहचान मिली साल २००३ में। ये वो अभिनेता है जिनके पास एक समय में जिस फिल्म को देखने के लिए जेब में पैसे नहीं थे उसी फिल्म के सीक्वल में एक अभिनेता के तौर पर काम किया। इस बेहतरीन अभिनेता का नाम है इरफ़ान खान, चलिए जानते है उनकी जिंदगी से जुडी कुछ ऐसी बातें जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी।

एक समय ऐसा था जब अपनी कॉलेज की पढ़ाई की फीस भरने के लिए किसी से पैसे उधार लेना पड़ता था। जिस फिल्म में बॉलीवुड में काम करने के लिए इरफ़ान खान दिल्ली से मुंबई आये, उसी फिल्म से उन्हें निकाल दिया गया।

Biography
७ जनवरी १९६७ में जयपुर, राजस्थान में जन्मे इरफ़ान खान, जयपुर में ही पले बढे है। इनकी मां सईदा बेगम एक हाउसवाइफ थी और पिता यासीन अली खान टायर्स का बिज़नेस किया करते थे। इरफ़ान खान का एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी है। एक मध्यमवर्गीय परिवार से होने की वजह से हर मध्यमवर्गीय मां और पिता की तरह इनके मां और पिता भी यही सोचते थे कि हमारा बेटा भी पढ़-लिखकर कुछ बनेगा, मगर फ़िल्में देखने का शौक होने के कारण इरफ़ान खान के मन में हीरो बनने का सपना पनपने लगा। लेकिन अपने इस सपने के बारे में वो किसी को बताने से शर्म आती थी क्यूंकि उनके पास न तो कोई फ़िल्मी बैकग्राउंड था और न ही फ़िल्मी हीरो जैसा चेहरा।

समय बीतता गया और इरफ़ान का हीरो बनने के सपने ने और मजबूती लेली। यही कारण था कि किसी को ना बताते हुए अपने कॉलेज के समय M.A. के लिए अप्लाई करते वक़्त उन्होंने NSD के लिए भी अप्लाई कर दिया था। NSD में सिलेक्शन तो हो गया, मगर फीस भरने के लिए २३७ रुपयों की जरुरत थी, वो घरवालों से कैसे बताते। इरफ़ान ने अपने दोस्तों से पैसे मांगे, जहां उन्हें सिर्फ निराशा ही मिली। ऐसे में इरफ़ान खान की बहन जो अपने तलाक के बाद अपने माता-पिता के साथ ही रह रही थी। उसने अपने पास बचाये हुए कुछ पैसों में से इरफ़ान को २३७ रुपये दिए। इन्हीं पैसों को भरकर इरफ़ान खान ने NSD में एडमिशन लिया था।

NSD में एडमिशन लेना भी कोई आसान काम नहीं था। NSD की शर्तों के मुताबिक एडमिशन लेने वाले को कम से कम १० नाटकों का एक्सपीरियंस होना जरुरी था। ऐसे में इंटरव्यू में इरफ़ान खान ने झूठ बोल दिया कि उन्हें ये एक्सपीरियंस है। उनका ये झूठ काम कर गया और उन्हें NSD में एडमिशन मिल गया। वो कहते है ना कि झूठ बोलने से अगर कुछ अच्छा होता है तो वो झूठ, झूठ नहीं होता।

NSD में पढ़ने के दौरान ही इरफ़ान खान की मुलाक़ात सुतापा से हुई और उनसे दोस्ती हो गयी। इसी दोस्ती को आगे चलकर प्यार में बदलते देर नहीं लगी और दोनों ने शादी कर ली। NSD में पढ़ाई के दौरान इरफ़ान खान के साथ पियूष मिश्रा, निर्मल पांडे और संजय मिश्रा जैसे कलाकार भी सीख रहे थे। तीन साल NSD में सीखने के बाद इरफ़ान खान को दीपा मेहता के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ में लीड एक्टर के तौर पर काम करने का मौका मिला।

इरफ़ान फिल्म के लिए मुंबई आये और इस फिल्म के लिए २ महीनों तक चली वर्कशॉप में हिस्सा भी लिया। लेकिन, शूटिंग शुरू होने के कुछ ही समय पहले इरफ़ान खान को ये पता चलता है कि वो अब इस फिल्म का हिस्सा ही नहीं रहे है और उनकी जगह किसी और को ले लिया गया है।

इरफ़ान खान टूट चुके थे। NSD के एक अच्छे स्टूडेंट थे तो उनका दिल रखने के लिए दीपा मेहता ने उन्हें इस फिल्म में एक छोटा सा रोल दे दिया। जिसकी वजह से इरफ़ान पहली बार कैमरे का सामना कर सके। इसके बाद इरफ़ान का स्ट्रगलिंग का दौर शुरू हुआ और इसी दौर में इरफ़ान ने जज़ीरा, पिता और दृष्टि जैसी कुछ शॉर्ट फिल्मों में काम किया। इसके साथ-साथ उन्होंने टेलीविज़न में भी काम करना शुरू किया। इनमें चंद्रकांता, बनेगी अपनी बात, स्टार बेस्टसेलर्स और नया दौर जैसे मशहूर सीरियल्स में काम किया।

ऐसा नहीं था कि इरफ़ान फिल्मों में कोशिश नहीं कर रहे थे। वो कई निर्माता-निर्देशकों के ऑफिस के चक्कर काट रहे थे। ऐसे में इरफ़ान खान निर्माता-निर्देशक रामगोपाल वर्मा से भी मिलने जाने वाले थे। किसी ने रामगोपाल वर्मा को इरफ़ान खान के बारे में बताया था और रामगोपाल वर्मा उनकी एक्टिंग भी देखी थी। इरफ़ान की तस्वीरें देखकर ही रामगोपाल वर्मा ने उनसे मिलने के लिए मना कर दिया था और कहा था कि “कौन वो, वो काला सा एक्टर, मैं उससे नहीं मिलना चाहता। वो एक्टर बनने के लायक नहीं है।” कुछ इस तरह से इरफ़ान खान को रामगोपाल वर्मा ने रिजेक्ट कर दिया था।
एक ऐसा बंदा जो पहले से ये जानता है कि वो एक्टर जैसा नहीं दिखता, कोई फ़िल्मी बैकग्राउंड नहीं है, फिर भी स्ट्रगल कर रहा है और उसे अपना गुजरा करने में भी तकलीफें हो रही है। उसके लिए फिल्म इंडस्ट्री से ऐसे कड़वे शब्द सुनना दिल तोड़ने वाला होता है।

कई बार तो ऐसा हुआ करता था कि इरफ़ान खान के पास फ़िल्में देखने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करते थे। ऐसे ही एक बार जब ‘जुरासिक पार्क’ फिल्म आयी थी, तब इरफ़ान साहब वो फिल्म देखना चाहते थे। मगर इनके पास पैसे नहीं थे। तब इरफ़ान के दोस्त उन्हें ये फिल्म दिखने ले गए थे। लेकिन, कुछ सालों बाद इरफ़ान खान इसी फिल्म के सीक्वल ‘जुरासिक वर्ल्ड’ में अभिनेता के तौर पर नज़र आये थे।

साल १९८८ से साल २००० तक स्ट्रगलिंग के २२ साल बाद इरफ़ान खान को अपने दोस्त तिग्मांशु धुलिया के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘हासिल’ में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में इरफ़ान ने खलनायिकी की थी। फिल्म तो फ्लॉप रही, मगर इरफ़ान खान को ‘बेस्ट एक्टर इन नेगेटिव रोल’ का ‘फिल्मफेयर अवार्ड’ दिया गया। यहीं से इरफ़ान खान को फ़िल्मी दुनिया में पहचान मिली।

इसके बाद इरफ़ान खान और भी कुछ फिल्मों में नज़र आये जैसे कि ‘आन’, ‘चॉकलेट’ और ‘रोग’। साल २००७ इरफ़ान खान के लिए लकी साबित हुआ, इसी साल वो फिल्म ‘मेट्रो’ में नज़र आये। ये फिल्म बॉक्सऑफिस पर कमाल कर गयी। इसी साल इरफ़ान एक इंग्लिश फिल्म ‘द नेमसेक’ में भी नज़र आये थे। जो काफी अच्छी चली थी।

साल २००८ में इरफ़ान खान, रोहित शेट्टी की फिल्म ‘संडे’ में नज़र आये। इसके साथ ही इसी साल इरफ़ान फिल्म ‘स्लम डॉग मिलेनियर’ में नज़र आये। साल २००९ में शाहरुख़ खान के साथ फिल्म ‘बिल्लू’ और जॉन अब्राहम के साथ ‘न्यूयोर्क’ फिल्म में दिखाई दिए। इरफ़ान खान धीरे-धीरे बॉलीवुड पर अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ रहे थे और तभी उन्हें एक बहुत अच्छी कमर्शियल मसाला एंटरटेनमेंट फिल्म ऑफर हुई।

इरफ़ान ने इस फिल्म के लिए तैयारी भी कर ली थी। मगर, फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले उन्हें पता चलता है कि वो अब इस फिल्म का हिस्सा नहीं रहे, क्यूंकि निर्देशक को एक बड़ा सुपरस्टार मिल गया है, जो इस फिल्म में पैसे लगाने को भी तैयार था। वो सुपरस्टार अपने साथ-साथ अपने भाई के करियर को भी नयी शुरुवात देना चाहता था। इस फिल्म का नाम था ‘दबंग’ और वो सुपरस्टार थे सलमान खान।

इरफ़ान खान अब ऐसी घटनाओं के आदि हो चुके थे। उन्होंने ये मान लिया था कि ये फ़िल्मी दुनिया के उसूलों में से एक है। वो मेहनत करते रहे और वो दिन आ ही गया जब इरफ़ान खान को साल २०१२ में आयी बायोपिक फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस फिल्म का निर्देशन इरफ़ान साहब के दोस्त तिग्मांशु धुलिया ने ही किया था।

इसी साल इरफ़ान दो बड़ी इंग्लिश फिल्मों में भी नज़र आये। एक थी ‘द अमेजिंग स्पाइडर मैन’ और दूसरी थी ‘लाइफ ऑफ़ पाई’। ये वो समय था जब इरफ़ान खान बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड में भी खूब नाम कमा रहे थे। अब बॉलीवुड में भी इरफ़ान खान के लिए किरदार लिखे जाने लगे थे, क्यूंकि अब इरफ़ान के पास हॉलीवुड और बॉलीवुड दोनों का अच्छा-ख़ासा बैकग्राउंड था।
इसके बाद इरफ़ान खान ने अवार्ड विनिंग फिल्म ‘द लंच बॉक्स’ में काम किया। हॉलीवुड फिल्म ‘जुरासिक वर्ल्ड’, ‘गुंडे’ और अमिताभ बच्चन के साथ ‘पीकू’ में काम करके उन्होंने जबरदस्त तारीफें बटोरी। फिल्म ‘तलवार’ और ‘हिंदी मीडियम’ से इरफ़ान खान ने बॉलीवुड में एक लीड एक्टर के तौर पर अपने कदम जमा लिए। उनकी इन फिल्मों ने बॉक्सऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी।

इरफ़ान खान का करियर बहुत अच्छा चल रहा था उनकी इतने सालों की स्ट्रगल और मेहनत से उन्हें अपना सपना साकार होता हुआ नज़र आ रहा था। अपने जवानी दिनों में स्ट्रगल और इतनी मेहनत करने के बाद जब उन्हें अच्छे फिल्मों के ऑफर आने लगे, नेशनल अवार्ड से उन्हें नवाजा गया, पद्मश्री अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया, तभी जिंदगी ने उन्हें मात दे दी।

साल २०१८ में इरफ़ान को पता चला कि उन्हें एक ऐसा ट्यूमर है जिसका इलाज बहुत मुश्किल है। इस ट्यूमर के इलाज ने उन्हें इंडिया से लन्दन पंहुचा दिया। कुछ महीनों तक उन्होंने ट्यूमर का इलाज करवाया। कई ऐसी फ़िल्में थी जो इरफ़ान के लिए रुकी हुई थी। इन्हीं में से एक फिल्म थी ‘अंग्रेजी मीडियम’। इस फिल्म के निर्देशक चाहते थे कि अगर वो फिल्म को किसी के साथ बनाएंगे तो वो इरफ़ान खान ही होंगे। इरफ़ान खान ने अपने कैंसर का ट्रीटमेंट ख़त्म किया, उसके बाद वो इंडिया आये। कुछ समय तक फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ की शूटिंग की और फिर से इलाज लिए वापस चले गए।

कहते है न कि किसी किसी की किस्मत में स्ट्रगल करना जीवनभर के लिए लिखा होता है। तबीयत ठीक न होते हुए भी इरफ़ान ने फिल्म की शूटिंग पूरी की और ये फिल्म जिस दिन रिलीज़ हुई कि उस दिन पूरे भारत में कोरोना वायरस की वजह से जगह-जगह पर लॉक डाउन शुरू होने लगे। जिससे ज्यादा लोग इस फिल्म को थिएटर में देख ही नहीं पाए। हालांकि, इरफ़ान खान को इस बात का दुःख भी था कि वो इस फिल्म का प्रमोशन भी नहीं कर पाए, क्यूंकि इस फिल्म के पूरे होने के बाद ही उनकी तबीयत फिर से ख़राब हो गयी थी।

वैसे तो इरफ़ान खान के अंदर काम करने की भूख बहुत थी मगर, जिंदगी ने उन्हें उतना वक़्त नहीं दिया। अपनी मेहनत और स्ट्रगल से कमाया हुआ स्टारडम में वो ज्यादा समय तक नहीं जी पाए और २९ अप्रैल २०२० के दिन अपनी बीमारी के चलते महज ५३ साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

अगर लॉक डाउन नहीं होता तो शायद पूरी फिल्म इंडस्ट्री उनके लिए खड़ी हो जाती। लेकिन, लॉक डाउन के चलते बहुत कम ही लोग इरफ़ान खान की अंतिम यात्रा में शामिल हो पाए। इनमें कपिल शर्मा और मीका सिंह शामिल थे, जो इनके पडोसी भी थे। इरफ़ान के बेस्ट फ्रेंड तिग्मांशु धुलिया और विशाल भरद्वाज जिनके साथ इरफ़ान ने फिल्म ‘हैदर’ में काम किया था। फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे ही कुछ चंद लोग इरफ़ान खान की अंतिम यात्रा में शामिल हो पाए।

बॉलीवुड में जहां एक तरफ फिल्म इंडस्ट्री को खान और कपूर जैसी कैटिगरी में बांटा जाता है। वहीँ अगर बात करें इरफ़ान खान की तो उन्होंने तो एक समय पर अपने नाम से खान भी हटा दिया था। इरफ़ान चाहते थे कि लोग उन्हें मजहब से नहीं बल्कि एक अच्छे कलाकार और एक अच्छे इंसान के तौर पर जाने। हम अपनी तरफ से और पूरे देश की तरफ से इरफ़ान खान को श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
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