मतंगेश्वर महादेव मंदिर – इस मंदिर के शिवलिंग की लंबाई बढ़ती है हर साल

मतंगेश्वर महादेव मंदिर – इस मंदिर के शिवलिंग की लंबाई बढ़ती है हर साल

खजुराहों में मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है| मंदिर में स्थित शिवलिंग ९ फ़ीट जमीन के अंदर कर उतना ही बाहर भी है| यही नहीं इसके अलावा मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है| इसे यहाँ के अधिकारी इंची टेप से नापते है|

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मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकर के बराबर बढ़ जाती है| शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बाकायदा इंची टेप से नापते है| जहाँ शिवलिंग पहले से तुलना में लंबा मिलता है|
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मंदिर की विशेषता यह है कि यह शिवलिंग जितना ऊपर की तरफ बढ़ता है उतना ही नीचे की तरफ बढ़ता है| शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है| वैसे तो यह मंदिर भक्तो से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहाँ भक्तों का तांतां लगा रहता है| दर्शन करने के लिए लोग लंबी लाइनों में लगे रहते है|
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लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर ३५ फ़ीट के वर्गाकार दायरे में है| इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है| प्रवेश द्वार पूरब की ओर है| मंदिर का शिखर बहुमंज़िला है| इसका निर्माण काल ९०० से ९२५ ईस्वी के आसपास का माना जाता है| चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ|
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मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है जो ८.५ फ़ीट ऊंचा है| इसका घेरा तकरीबन ४ फ़ीट का है| इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते है| छतरपुर जिले के खजुराहों में किसी समय ८५ मंदिर होते थे, लेकिन अब सिर्फ कुछ ही मंदिर बचे है| पुरातत्व मंदिरों में मतंगेश्वर महादेव का ही एक ऐसा मंदिर है|
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मतंगेश्वर महादेव मंदिर ९ वीं सदी में बना हुआ मंदिर है| आज यह मंदिर पूजा-पाठ व आस्था का केंद्र बना हुआ है| मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहों में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् शंकर के पास मकरत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों में ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर को दे दी थी|

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युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि तक पहुंची ओर उन्होंने राजा हर्षवर्मन को दे दी| मतंग ऋषि की मणि की वजह ही इस मंदिर का नाम मतंगेश्वर महादेव मंदिर पड़ा| कहा जाता है कि शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से जमीन में गाड़ दी गयी थी| तब से मणि शिवलिंग के नीचे ही है|

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