हमारे देश में विभिन्न प्रकार की परंपराओं का पालन किया जाता है| मगर आज हम आपको जंगमवाड़ी मठ की उस परंपरा के बारे में बताने जा रहे है, जिसके बारे में शायद किसी ने सुना या देखा होगा| चलिए इसके बारे में जानते है|
वाराणसी में स्थित ‘जंगमवाड़ी मठ’ यहाँ का सबसे पुराना मठ है| जंगम का अर्थ होता है ‘शिव को जानने वाला’ और वाड़ी का अर्थ होता है ‘रहने का स्थान’| ये मठ करीब ५ हजार स्क्वायर फ़ीट में फैला हुआ है| राजा जयचंद द्वारा दान की गयी भूमि पर बसे इस मठ में अब ८६ जगतगुरु हो चुके है| जो अपनी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है| इस मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है| यहाँ आत्मा की शान्ति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग का दान होता है|
‘जंगमवाड़ी मठ’ में मृत लोगों की मुक्ति और आत्मा की शान्ति के लिए शिवलिंग स्थापित किये जाते है| कई सालों से चली आ रही इस परंपरा के चलते यहाँ एक दो नहीं बल्कि १० लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित किये जा चुके है| हिन्दू धर्म में जिस तरीके से और विधि-विधान से पिंड का दान किया जाता है| ठीक उसी तरह से मंत्रोचारण के साथ यहां शिवलिंग स्थापित किया जाता है|
इतना ही नहीं बच्चे के जन्म के कुछ महीनों बाद वहीँ शिवलिंग गले में बांधा जाता है और माँ दूसरा शिवलिंग धारण कर लेती है, जो जीवनभर उसके साथ रहता है| ‘जंगमवाड़ी मठ’ दक्षिण भारतियों का है| जिस तरह से हिन्दू धर्म में लोग अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया करते है, उसी तरह से वीरशैव संप्रदाय के लोग अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए शिवलिंग का दान करते है|
पिछले करीब २५० सालों से चली आ रही इस अनवरत परंपरा में सबसे ज्यादा सावन के महीनों में शिवलिंगों की स्थापना होती है|
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