बॉलीवुड में ऐसे कई कलाकार है जिन्होंने अपनी मेहनत से अपनी किस्मत खुद बनाई है। ऐसे ही एक कलाकार है नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी , जिनकी मेहनत और लगन की वजह से आज वे बॉलीवुड के टॉप के अभिनेताओं में गिने जाते है।
साल १९९९ में ‘शूल’ फिल्म में वेटर और ‘सरफ़रोश’ फिल्म में मुखबिर की भूमिका निभाने वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी आज बॉलीवुड के एक ऐसे सितारे बन चुके है जिनकी चार-चार फिल्मों को एक साथ नेशनल अवार्ड के लिए सम्मानित किया जाता है। साल २०१२ में फिल्म ‘तलाश’, ‘कहानी’ और ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ १-२ के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ दिया गया था।
१९ मई १९७४ में जन्मे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी उत्तर प्रदेश के ‘मुजफ्फरनगर’ जिले के एक छोटे से कस्बे ‘बुढ़ाना’ में एक किसान परिवार से है। नवाज ने अपनी पढाई हरिद्वार की गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया है। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का असली नाम नम्बरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी है। पढाई के बाद नवाज ने गुजरात के वड़ोदरा में करीब साल भर के लिए एक केमिस्ट की नौकरी की।
एक बार उनके साथ काम करने वाला उनका एक दोस्त उन्हें नाटक दिखाने के लिए थिएटर में लेकर गया। नाटक देखने के बाद ही उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने का मन बना लिया और दिल्ली आ गये।
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एक्टिंग सीखने के लिए ‘नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा’ (NSD) को दुनिया की सबसे अच्छी जगहों में से एक माना जाता है, मगर यहां एडमिशन के लिए कुछ नाटक (PLAY) करने का अनुभव चाहिए था। जिसके लिए नवाज ने शाक्षी थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया था, जहां मनोज बाजपाई और और सौरव शुक्ला जैसे कलाकार भी एक्टिंग के गुर सीख रहे थे।
एक इंटरव्यू के दौरान नवाज ने बताया था कि एक समय दिल्ली में गुजारा करने के लिए नवाज नौकरी की तलाश कर रहे थे कि एक दिन एक पब्लिक टॉयलेट की दीवार पर चिपका पोस्टर उन्हें दिख गया जिस पर सिक्योरिटी गॉर्ड चाहिए ऐसा लिखा था। नवाज ने उनसे संपर्क किया और एक खिलोने की फैक्ट्री में वॉचमन की नौकरी कर ली, जिसके लिए उन्हें ५०० रुपये महीने के मिले करते थे।
इस नौकरी में इन्हें ज्यादातर धुप में खड़े रहना पड़ता था और कभी-कभी आराम करने के लिए वो छाँव में जाकर बैठ जाया करते थे। इत्तेफ़ाक़ से उसी समय कंपनी के मालिक भी आ जाया करते थे। ऐसा कई बार होने पर कंपनी के मालिक ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था और नौकरी पर लगते समय नवाज ने जो सिक्योरिटी डिपाजिट के तौर पर पैसे जमा किये थे वो भी उन्हें वापस नहीं दिए गये थे।
NSD से अभिनय की शिक्षा के बाद नवाज ने दिल्ली में करीब ४ साल तक कई थिएटर्स में नाटक का काम किया, मगर इन सब के लिए उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते कि अपना सपना पूरा कर सके। इसके बाद उन्होंने साल २००० में मुंबई में अपने कदम रखे।
मुंबई में उन्होंने NSD के एक सीनियर रहने के लिए से मदद मांगी, सीनियर तैयार भी हुआ तो इस शर्त पर कि नवाज को उसके लिए खाना बनाना होगा। नवाज इसके लिए तैयार भी हो गये। कई धक्कों और मायूसी के बाद नवाज को उनकी जिंदगी का सबसे पहला ब्रेक मिला आमिर खान की फिल्म ‘सरफ़रोश’ में, जिसमें उनका किरदार महज ४० सेकंड का था। इस फिल्म में उन्हें एक छोटे-मोटे अपराधी की भूमिका में दिखाई दिए थे जिसे पुलिस पकड़कर पूछताछ करती है।
नवाज ने कभी चोर, कभी वेटर, तो कभी भिकारी ऐसे ही कई एक-एक सीन वाले रोल किये। एक दफा तो उन्होंने सचिन तेंदुलकर के विज्ञापन सचिन आला रे में धोबी का किरदार भी किया जिसके लिए उन्हें ५०० रुपये दिए गये थे।
ऐसा कई सालों तक चलता रहा। तंग आकर नवाज के मन में गांव वापस जाने का ख्याल भी आता तो सोचते कि वापस जाकर करूंगा भी क्या और अगर गया भी तो गांव वाले ताना मारेंगे, अब जो होगा मुंबई में ही होगा।
उनकी मेहनत और हौसला काम आया और साल २०१० में ‘पीपली लाइव’ फिल्म में उन्हें एक पत्रकार का महत्वपूर्ण रोल दिया गया। इस फिल्म ने बतौर एक्टर उन्हें एक पहचान दिलायी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘कहानी’, ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर १-२’, ‘तलाश’, ‘द लंच बॉक्स’, ‘किक’, ‘बदलापुर’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘मांझी’ जैसी एक से बढ़कर एक फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया।
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