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जब समुद्र में मिला, समुद्र मंथन वाला मंदराचल पर्वत

जब समुद्र में मिला, समुद्र मंथन वाला मंदराचल पर्वत

समय-समय पर हमें ऐसे कुछ प्रमाण मिलते रहते है जो इस बात को सिद्ध करते है कि हमारे पौराणिक पात्र, पौराणिक घटनाएं मात्र हमारी एक कल्पना नहीं है| पौराणिक कथाओं में हमने समुन्द्र मंथन के बारे में सुना था, जिसमे देवताओं और राक्षसों ने मिलकर मंदराचल पर्वत पर वासुकि नाग को लपेटकर समुद्र मंथन किया था| वही मंदराचल पर्वत दक्षिण गुजरात में मिला, जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे है|
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OMG facts Mandarachal Parvat – मंदराचल पर्वत

दक्षिण गुजरात के समुद्र में मिला समुद्रमंथन वाला वही पर्वत मिला है| वैज्ञानिक परिक्षण के आधार पर इसकी पुष्टि भी की जा चुकी है| पिंजरत गाँव के समुद्र में मिला पर्वत बिहार के भागलपुर में विराजित मूल मांधार शिखर जैसा ही है| गुजरात-बिहार का पर्वत एक जैसे ही है| दोनों ही पर्वत में ग्रेनाइट की बहुलता है| इस पर्वत के बीचों बीच नाग की आकृति भी मिली है|
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सामान्यतः समुद्र की गोद में मिलने वाले पर्वत ऐसे नहीं होते| सूरत के ऑर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी ने कॉर्बन टेस्ट के परिक्षण के बाद यह निष्कर्ष निकाला है| ओशनोलॉजी ने अपनी वेबसाइट पर इस तथ्य की आधिकारिक रूप से पुष्टि भी की है कि यह वही समुद्रमंथन वाला पर्वत ही है|
omg-facts-mandarachal-parvat-मंदराचल पर्वतसाल १९८८ में सूरत के ओलपाड से लगे पिंजरत गाँव के समुद्र में प्राचीन द्वारका नगरी के अवशेष मिले थे| डॉ. एस.आर.राव इस साइट पर शोधकार्य कर रहे थे| सूरत के मितुल त्रिवेदी भी उनके साथ थे| विशेष कैप्सूल में डॉ. राव के साथ मितुल त्रिवेदी भी समुद्र के अंदर ८०० मीटर की गहराई तक गए थे| उसी समय समुद्र के गर्भ में एक पर्वत मिला था|
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इस पर्वत पर घिसाव के निशान नज़र आये| अध्यन करने पर पहले माना गया की घिसाव के निशान जलतरंगों के हो सकते है| इसके बाद विशेष कॉर्बन टेस्ट किये जाने के बाद पता चला कि यह पर्वत मांधार पर्वत है|

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ऑर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट ने सबसे पहले अलग-अलग टेस्ट किये| जिससे साफ़ हुआ कि पर्वत पर नज़र आ रहे निशान जलतरंगो के कारण नहीं पड़े है| आपको बतादें के द्वारका नगरी के पास ही देवताओं और राक्षसों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था| इस मंथन के लिए मंदराचल पर्वत का उपयोग किया था|

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